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ऑस्ट्रेलिया सरीखे मुल्क अगर हम पर नस्लीय फब्तियां कसते हैं तो इसके मुझे दो ही कारण नज़र आते हैं. एक यह कि हम उन्हें अपने से ज्यादा आधुनिक, काबिल समझकर उन जैसे लोगों का रहन-सहन अपनाने की होड़ में हैं और दूसरा यह कि हम सहनशील, गंभीर हैं और हमारी तहज़ीब हमें इन बातों को छोटा जानकर नज़रअंदाज़ करने की सीख देती है. मगर अब पानी सिर से ऊपर होने को है. हमारी ख़ामोशी को बुज़दिली समझा गया है.
ऑस्ट्रेलिया उस बिगडैल अमीरजादे की तरह है जिसे अपनी दौलत, रहन-सहन पर बेजा घमण्ड है. आख़िर हम किस बात में उस छटांकभर मुल्क से कम हैं. ऑस्ट्रेलियन उस गोरे रंग पर इतरा रहे हैं जिसका सफ़ेद दाग हमारे यहाँ कोढ़ माना जाता है. हम कई भाषाओं के जानकार, मुल्क में हिन्दू-मुस्लिम-इसाई, सभी जाति-धर्म के लोग मिल-जुलकर रहते हैं और वहाँ काले रंग की चमड़ी का आदमी भी नाक़ाबिले-बर्दाश्त है. आए दिन ऐसे देशों में रंग-भेद को लेकर हादसे पेश आते रहते हैं. पहनावा हमारा तहज़ीब के दायरे में, शब्द हमारे बड़ों-छोटों की अहमियत के मुताबिक,रिश्ते हमारे यहाँ आसमानी फ़रमान समझे जाते हैं. इस सबके बावजूद क्या हम बेतहज़ीब हैं, जबकि जिस्मानी रिश्तों की खुली छूट, फैशन के नाम पर अर्धनग्न बदन, कॉन्ट्रेक्ट मैरिज, ये सब हमारे लिए क्या, किसी भी सभ्य मुल्क के लिए तहज़ीब का आधार नहीं हो सकते.
सच तो यह है कि हमारे लोगों की क़ाबिलियतऔर संख्या को देखकर ऑस्ट्रेलिया के लोग किसी डर में हैं. कोई इन्सान तो क्या जानवर तक किसी डर, आशंका के बग़ैर सामने वाले पर हमला नहीं करता. यही वजह है कि लगातार हिन्दुस्तानी छात्रों पर हमले हो रहे हैं और देश कि अस्मत पर तंज़ का दौर गर्म है.
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