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अगर आदमी के लिए ‘नामर्द’ शब्द का इस्तेमाल हो सकता है तो एक औरत के लिए ‘नाऔरत’ शब्द गढऩा मुझे बिल्कुल भी ग़लत नहीं लग रहा। ख़ासकर, आइटम गर्ल राखी सावन्त के लिए तो यह शब्द बिल्कुल सही है, क्योंकि एक औरत की नज़ाक़त, शर्म, ममता, जज़्बे से दूर राखी सावन्त के लिए न रिश्ते अहमियत रखते हैं और न इन्सान। इसी का नतीजा है- झाँसी के लक्ष्मण की मौत। इमेजिन चैनल पर प्रसारित हो रहा ‘राखी का इन्साफ़’ कार्यक्रम राखी की बेबाकियों का दूसरा ड्रामा है। इससे पहले वह ‘राखी का स्वयंवर’ में कण्टस्टेण्ट और दर्शकों की भावनाओं को ठग चुकी हैं।
पहली आईपीएस किरण बेदी के एक कार्यक्रम की तर्ज़ पर ‘राखी का इन्साफ़’ बनाया गया है। राखी कितनी क़ाबिल हैं, क़ानून की ज्ञाता हैं, यह बताने की ज़रूरत नहीं। परिवार से नौटंकी की ट्रेनिंग पायीं राखी ने बहुत स्ट्रगल किया होगा, इससे किसी को इनकार नहीं। मगर इस स्ट्रगल में उन्होंने शॉर्टकट अपनाते हुए न जाने कितनी शादियाँ, निकाह, अफेयर्स किये, इसका पता नहीं। अलबत्ता, इस बीच राखी अपना वह औरतपन कहीं छोड़ आयीं जो औरत की ख़ासियत होता है।
झाँसी के लक्ष्मण की मौत शराब पीने से हुई, ऐसा चैनल का दावा है। हालाँकि अभी मेडिकल रिपोर्ट नहीं आयी है, मगर इतना तो तय है और परिजन, रिश्तेदार, मुहल्लेवाले भी कह रहे हैं कि लक्ष्मण की मौत तनाव से हुई और तनाव राखी के ‘नामर्द’ जैसे अपशब्दों का था, जो सरेआम लक्ष्मण से राखी ने कहे थे। पत्नी से काफी समय से दूर रह रहा लक्ष्मण उससे मिलना चाहता था और इसीलिए राखी के बुलावे पर कार्यक्रम में गया भी था। एक आदमी, जो पहले से मानसिक तनाव झेल रहा हो और एक उम्मीद पर अपने व्यक्तिगत जीवन का ख़ुलासा करे, उसकी हालत को समझा जा सकता है। मगर बिना कुछ सोचे-समझे राखी ने उसको दोषी तो क़रार दिया ही, ‘नामर्द’ जैसे अपशब्दों से उसको बेइज़्ज़त भी किया। ठेला लगाकर बसर करने वाले लक्ष्मण को इस कार्यक्रम के बाद मुहल्ले के लोग ‘नामर्द’ कहकर तंज़ करने लगे थे। उसने घर से निकलना-मिलना-बोलना छोड़ दिया था और इन्हीं हालात में उसकी मौत हुई। अब उसकी माँ राखी से अपना बेटा मांग रही है।
वह महिला आयोग जो ‘राखी-मीका किस’ मामले में राखी का पक्षधर बनकर सामने आया था, बिना यह सोचे कि राखी की ड्रेस और तरीक़ा उकसाने वाला था, क्या अब लक्ष्मण की माँ के लिए इन्साफ़ की गुहार लगाएगा।
‘राखी के स्वयंवर’ में प्रतियोगियों की भावनाओं का शोषण, दूसरे कार्यक्रम में मासूम, अबोध बच्चों के बचपन से खिलवाड़ और अब तीसरे में लक्ष्मण की मौत, यही है ‘राखी का इन्साफ़’। राखी और चैनल किस बिना पर कार्यक्रम में इन्साफ़ की बात करते हैं। चीखना- बेइज़्ज़त करना ही अगर इन्साफ़ का तरीक़ा है तो उन जजों को शर्मसार हो जाना चाहिए जो एक क़ातिल, रेपिस्ट के लिए भी नर्म, दयनीय ज़ुबान इस्तेमाल करते हैं।
इन्साफ़ की देवी कहलाती अर्धनग्न राखी सावन्त इसलिए पर्दे पर हैं, क्योंकि हम देखना चाहते हैं और अब हमारे ही हाथ है कि हम राखी और इस तरह के कार्यक्रम बनाने वाले चैनलों का पूरा बहिष्कार करें, यही ‘जनता का इन्साफ़’ होगा।
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