Menu
blogid : 3265 postid : 15

डायन सरकारें

Tarkash
Tarkash
  • 32 Posts
  • 193 Comments

ग़रीब 6 ही सिलेण्डर साल भर में इस्तेमाल करते हैं, यह तर्क अपने भाषण में माननीय प्रधानमंत्री ने व्यक्त किया। उनसे ज़्यादा ग़रीबों के हालात के बारे में और कौन जान सकता है क्योंकि प्रधानमंत्री जिस आयोग के अध्यक्ष हैं उसी से कुछ दिन पहले एक बयान जारी हुआ था कि 26 या 28 रुपये रोज़ कमाने वाला ग़रीबी की रेखा से ऊपर है यानि वह ग़रीब नहीं है। दूसरा तर्क पीएम का यह भी ध्यान देने के काबिल है कि पैसे पेड़ों पर नहीं उगते। माननीय पीएम को यह तो खुद समझना चाहिए क्योंकि जिस तरह से उनकेे मंत्री और सांसद जनता के रुपयों की बर्बादी करते रहे हैं उससे तो यही लगता है कि सरकार कोई भी रही हो सबके लिए जनता रुपयों का एक पेड़ ज़्यादा साबित होती रही है। आज़ादी के समय एक पत्रिका के सम्पादकीय में यह विचार छपे थे कि 1857 और उसके बाद का जो विद्रोह और संघर्ष भारतीय जनता ने किया वह इसलिए हुआ था कि उनको दो वक़्त की रोटी मिलनी भी मुश्किल होने लगी थी यानि वह संघर्ष रोटी के लिए हुआ था। आज भी रोटी आम आदमी से दूर होती जा रही है। खाने के सामान महंगे, ईंधन महंगा, रोज़गार की कि़ल्लत। यह सब आम आदमी के आक्रोश को बढ़ाने में मद्दगार साबित हो रहे हैं। सोचने वाली बात है कि जिस जनता के लिए जि़न्दगी दिन-ब-दिन दूभर होती जा रही है और सरकार हर महंगाई पर मजबूरी और आर्थिक हालात सुधारने का तर्क देकर अपना पल्ला झाड़ कर अलग हो जाती है उसी सरकार के मंत्री साल में 70-80 सिलेण्डर सिर्फ़ अपनी पार्टियों पर ख़त्म कर देते हैं। इस देश में जहाँ करीब डेढ़ सौ रुपयों में एक बेबस माँ अपने तीन बच्चों को महज़ चन्द वक़्त की रोटी मुहैया होने के एवज़ में बेच देती है वहाँ रोज़ के हिसाब से लाखों रुपयें सिर्फ़ विदेशों की यात्राओं और आलीशान होटलों में ठहरने के लिए मंत्री फंूक डालते हैं। यह कैसी डायन सरकारें हैं जो अपनी जनता नाम की औलाद को ही निगल रही है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh