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रिश्तों की हक़ीक़त से आमना-सामना

Tarkash
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यूँ कोयला मंत्री का बयान उनके ओहदे को देखते हुए जायज़ तो नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इस बयान की सच्चाई को भी नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए। आखि़र उन्होने यह ही तो कहा कि पुरानी शादी में वो बात नहीं रहती, मज़ा नहीं रहता। यह शब्द ज़रूर तीखे लग सकते हैं मगर यही तो ज़्यादातर घरों और रिश्ते की सच्चाई है। क्योंकि अगर यह सच नहीं होता तो आज लोग शादी के बाद के सम्बन्धों को इतनी अहमियत नहीं देते। आज 90 प्रतिशत लोग अपने रिश्तों को घसीट रहे हैं। उनका प्रतिशत भी चैकाने वाला है जो अपने शादी के रिश्तों के साथ-साथ नाजायज़ रिश्तों को भी अपनी चतुराई से चला रहे हैं। इससे लोग भले ही खुले तौर पर इंकार कर लें लेकिन यह सच है कि आज ऐसे सम्बन्धों की बाढ़ सी आ गई है जो दोस्ती के नाम पर अपने ही घरों की शान्ति में सेंध लगा रहे हैं। चाहें घर की चहार दीवारी हो, आफिस का कामकाजी माहौल या फिर सोशल साइट्स या मोबाइल फोन, यह सब ज़रिये बन चुके हैं अपने गै़रवाजिब रिश्तों को खाद-पानी देने के। बातें बड़ी-बड़ी की जाती हैं और हक़ीक़त में होता क्या है यह हर वह इंसान जानता है जो या तो ऐसे रिश्तों को परदे में पाल रहा है और या फिर ऐसे रिश्तों की वजह से अपने रिश्ते में आई खटास को झेल रहा है। क्या आज कोई भी औरत यह दावे के साथ कह सकती है कि उसके पति की जि़न्दगी में मौजूदा वक़्त में वही एक औरत है, सच जो भी हो पर एक आशंका ज़रूर लगी रहती है। पहले मर्दो का एक बड़ा तबका ऐसे रिश्तों को मर्दानगी की शान के नाम पर बनाए रखने में गर्व महसूस करता था आज इसका रूप बदल गया है और अब दोस्ती के परदे में नाजायज़ रिश्ते पनप रहे हैं वहीं इसे क्रिया की प्रतिक्रिया कह लीजिए या फिर अपने घरों या रिश्तों में घुटन महसूस कर रही और या फिर नएपन के नाम पर कोई नया साथी तलाश रही किसी औरत की ज़रूरत पर ऐसे रिश्तों को अहमियत देने में अब औरतें भी पीछे नहीं हैं कम से कम आंकड़ा और आस-पास का माहौल तो यही इशारा कर रहा है। उदाहरण भी हज़ारों, लाखों हैं पर यह तो हर इंसान के आस-पास या उसकी जि़न्दगी में गुज़र रहा है इसलिए बताने की ज़रूरत भी नहीं है। पर इतना ज़रूर है कि जैसे एक मछली पूरे ताल को गन्दा कर देती है क्या ऐसे लोगों का बढ़ता प्रतिशत समाज को दूषित नहीं कर रहा?
बात किसी के इस बात से इत्तेफ़ाक रखने न रखने की नहीं है और किसी के मानने न मानने से कुछ होने वाला भी नहीं लेकिन इससे जो हालात बन रहे हैं और जो माहौल पैदा हो रहा है वह ज़रूर तहज़ीब और हमारे विचारों को मुतास्सिर कर रहा है।

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