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महिलाओं को समान अधिकार तो समान सज़ा क्यों नहीं

Tarkash
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महिलाओं को अश्लील एसएमएस, एमएमएस, और दीगर साइट्स पर अश्लील किसी भी टिप्पणी के लिए अब पुरुषों को सज़ा भुगतनी पड़ेगी। वाक़यी यह तारीफ के काबिल कदम है। लेकिन उन मर्दों के लिए क्या कानूनी प्रावधान किए गए हैं जो महिलाओं के ज़रिए सताए, शोषित किए जाते हैं। हालांकि ऐसी घटनाओं का प्रतिशत पुरुषों के किए जाने वाले शोषण से कहीं कम है लेकिन इससे यह हल तो नहीं निकलता कि पुरुषों का शोषण होने दिया जाए। ऐसे ढेरों उदाहरण हैं जहाँ पुरुष भी शोषित है। आखिर कानूनी तौर पर पुरुषों के लिए भी तो ठोस कदम उठाए जाने की ज़रूरत है। बात अगर सोशल साइट्स और अश्लील मैसेज पर पुरुषों को सज़ा देने की है तो इसमें भी बराबरी का ख़्याल क्यों नहीं रखा गया। ऐसे कितनी अकाउण्ट हैं जिन पर लड़कियाँ अश्लील फोटो डाल कर लड़कों को आमन्त्रित करती हैं। ऐसे कितने संस्थान हैं जहाँ लड़कियाँ शार्टकट अपनाते हुए अपने शादीशुदा बाॅस या अपने सीनियर को अपने जाल में फंसाने के लिए एसएमएस, काल, मुलाकात, जैसे तरीके अपनाती हैं। ऐसी लड़कियों के लिए भी सज़ा का प्रावधान क्यों नहीं होना चाहिए। इससे कम से कम शरीफ़ मर्दों और उन लड़कियों को तो सहूलियत मिलेगी जो मेहनत के रास्ते भविष्य बनाती हैं। अकसर देखने में आता है कि दो प्रेमियों के बीच आपसी सहमति से बने शारीरिक सम्बन्धों के बाद शादी के वादे से मुकरने पर लड़के को बलात्कार के इल्ज़ाम में जेल की हवा खानी पड़ी। आखि़र जब नाज़ायज़ रिश्ते बनाने में दोनो की सहमति थी तो सज़ा एक को क्यों? वहीं धारा 498 अ के तहत ऐसे अधिकतर मामले हैं जहाँ दहेज माँगने के झूठे आरोप का ख़ामियाज़ा लड़के का पूरा परिवार भुगतता है और ऐसे एक-दो नहीं कई मामले हैं। ऐसे मामलों में गहन जाँच और आरोप झूठा निकलने पर लड़की को भी सज़ा मिलनी चाहिए ताकि किसी पुरुष का भी शोषण न हो। पिछले दिनों यह बात सामने भी आई कि दहेज के आरोप ज़्यादातर झूठे होते हैं जो ससुराल पक्ष पर दवाब बनाने को लड़कियों और उनके मायके पक्ष की तरफ से लगाए जाते हैं। इससे पुरुषों का तो शोषण होता ही है वहीं कानूनी प्रक्रिया बाधित के साथ लम्बी भी खिंचती है और असल पीडि़त को सज़ा भी नहीं मिल पाती। इसी तरह का मुद्दा पिछले कुछ दिनों मीडिया में भी छाया रहा जिसमें एक आदमी ने दहेज का आरोप उसकी पत्नी की तरफ से लगाने के बाद खुदकुशी कर ली और मरने से पहले अपना एक वीडियो बना कर प्रेस को जारी भी किया था जिसमें उसने कहा था कि ‘‘मैं अपनी पत्नी के झूठे आरोप से त्रस्त होकर यह कदम उठा रहा हूँ और मैं निर्दोष हूँ।’’ वहीं कुछ और मामले हैं जो अकसर सामने आते रहते हैं जैसे कि लड़की-लड़के का घर से चले जाना। लेकिन इनमें भी सज़ा अधिकतर मर्दों को ही मिलती है। पहले तो इसमें भी लड़की के नाबालिग होने का पहलू तलाशा जाता है फिर अगर ऐसा हुआ तो सज़ा लड़के को मिलनी तय है। जब दोनों ने ही प्यार किया, एक साथ घर से गए तो सज़ा एक को क्यों? लड़की पन्द्रह साल में माँ बन सकती है। घर की जि़म्मेदारियाँ उठा सकती है तो फिर घर से भागने के मामले में लड़का ही अकेले दोषी क्यों साबित किया जाता है। एक तरफ तो महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया गया है दोनों को कानूनी रूप से समान माना गया है तो वहीं दूसरी तरफ ऐसे मामलों में कार्रवाई एक तरफ क्यो?
मेरा बस इतना ही कहना है कि कोई भी क़ानून एक तरफ़ा न बने क्योंकि चाहें पुरुष हो या महिला दोनों तरफ़ ऐसे लोगों की भरमार है जो एक-दूसरे का शोषण करने में झिझक महसूस नहीं करते और इसका ख़ामियाज़ा असल पीडि़त भुगतते हैं।

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