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एक बार मिर्जा ग़ालिब को गालियों से भरा एक ख़त आया जिसमें उनको माँ की गालियाँ दी गयी थीं। दरअसल एक किताब की आलोचना करने के एवज़ में कुछ लोग उनको निशाना बनाए हुए थे, और यह भी कयास से ख़ाली बात है कि मिर्जा ग़ालिब ने उस शख़्स को कुछ बुरा कहने के बजाय उन्होने अपना एक अलग ही आकलन पेश किया। उन्होने ख़त लिखने वाले की समझ पर सवाल खड़ा करते हुए कहा ‘‘कि इसे इतना भी नहीं मालूम कि मुझे किस तरह की गालियाँ देनी चाहिएं, बच्चे को माँ की गाली दी जाती है क्योंकि वह माँ के ज़्यादा करीब होता है, युवा को बहन की गाली दी जाती है क्योंकि उसे घर की इज़्ज़त का ख़्याल होता है और ऐसी गालियाँ उसे चोट पहुँचाती हैं लेकिन इसने तो मुझे जो गालियाँ लिखी हैं वो उम्र के लिहाज़ से सही नहीं हैं।’’ ठीक ऐसा ही आज कल राजनीति के मंचों और सोशल साइटों पर किया जा रहा है। हाल का नरेन्द्र मोदी का शशि थरूर की पत्नी पर तन्ज़ कसना इसी तरह का वाक़या कहा जा सकता है, फर्क बस इतना है कि वहाँ गालियाँ लिखने वाले ने भले ही उम्र और हालात का ख़्याल न रखा हो लेकिन नरेन्द्र मोदी ने बाकायदा शशि थरूर के दिल की नब्ज़ को छेड़ कर निशाना साधने की अपनी मंशा को पूरा कर लिया है वहीं शशि थरूर ने भी नरेन्द्र मोदी की दुखती रग पर पाँव रख कर नरेन्द्र मोदी की भूली-बिसरी यादों को ताज़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इससे नेताओं का कुछ भला हो न हो लेकिन दो बिल्लियों की लड़ाई में जनता ज़रूर मज़ा लेगी जैसा कि आजकल केजरीवाल के खु़लासों से कांग्रेस और भाजपा आपस में आरोप-प्रत्यारोप कर जनता के सामने अपनी परते खोल रही हैं।
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