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संवेदनाएं तय होती हैं वर्ग, जाति या पंथ को ध्यान में रखकर !

Tarkash
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इस देश में किसी भी वर्ग, जाति या पंथ के वोटों को ध्यान में रखकर राजनीतिक पार्टियों की संवेदनाएं तय होती हैं न कि किसी इंसान के हालात और इंसाफ़ की लड़ाई को लेकर। फिर जिस घटना पर जनता अपना गु़स्सा ज़ाहिर करे तो वह पार्टियों और सरकार की राजनीतिक मजबूरी भी बन जाती है। दिल्ली रेप काण्ड भारी भीड़ जमा करने और देश-दुनिया का ध्यान खींचने में अहम रहा, इसलिए उसके लिए इंसाफ़ की आवाज़ें बुलन्द होती रहीं, मीडिया पीडि़त के घर-बचपन से लेकर दोस्त और अफेयर तक की ख़बरें परोसता रहा लेकिन वहीं इसी देश के एक हिस्से में पिछड़ी जाति की भंवरी देवी सामूहिक बलात्कार की शिकार होने के बावजूद आज भी इंसाफ़ के लिए जूझ रही हैं, उनके साथ न तो समाज है और न मीडिया यहां तक कि सरकारें भी नहीं। ऐसी ही राजस्थान के सीकर की ग्याहर साल की बच्ची बलात्कार से दिल और जिस्मानी तौर पर आहत जि़न्दगी के लिए अस्पताल में जंग लड़ रही है मगर उसको भी न लोगों की भीड़ नसीब हुई और न ही मीडिया ही उसके पक्ष को उभारने में कामयाब रही। पुरस्कार की हक़दार तो यह भी कम नहीं हैं बल्कि इन्हें जीने के लिए रुपयों, सम्मान के साथ जनता की सहानुभूति-प्रोत्साहन और मीडिया के भरपूर साथ की कहीं ज़्यादा ज़रूरत है क्योंकि जि़न्दगी के लिए ही समाज, सम्मान और इंसाफ़ की ज़रूरत होती है……………………………….!

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