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साथ खड़े होने की ज़रूरत !

Tarkash
Tarkash
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अजीब बात है, दिल्ली में बस के अन्दर हुए रेप केस को लोगों ने सड़क पर उतर कर इंसाफ़ दिलाया मगर आसूमल पर आरोप लगाने वाली पीड़ित लड़कियों के लिए ख़ासकर युवा जनता का सहयोग ना के बराबर है। छः लोगों के बीच फड़फड़ाती लड़की को तो हिम्मती कहने वालों की कमी नहीं थी लेकिन ऐसी लड़कियां जो एक रसूख़दार, अमीर, पाखण्डी के पापों से चादर हटाने को हिम्मत से डटी हुई हैं उनके लिए लोगों के उत्साह में कमी क्यों नज़र आ रही है?
यह बात सही है कि यह न्याय का विषय है और समय पर फ़ैसला होगा लेकिन क्या तब तक जब तक कि आसूमल के गुण्डेनुमा समर्थक ऐसी पीड़ितों को धमकाने, डराने में लगे हैं तब क्या आम लोगों को भी इन लड़कियों के साथ खड़े होने की ज़रूरत नहीं है?

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